25+ World Food Safety Day Speech in Hindi 2025

World Food Safety Day Speech in Hindi: विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस हर साल 7 जून को मनाया जाता है, ताकि लोगों को सुरक्षित और शुद्ध भोजन के महत्व के प्रति जागरूक किया जा सके।

इसका उद्देश्य है कि लोग यह समझें कि दूषित या मिलावटी भोजन से गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं जैसे फूड पॉइजनिंग, हैजा, टायफॉइड आदि।

यह दिन सरकार, उद्योग, किसान और उपभोक्ता — सभी को यह याद दिलाता है कि स्वच्छता, गुणवत्ता और जागरूकता से ही हम सुरक्षित भोजन सुनिश्चित कर सकते हैं।
स्वस्थ भोजन, सुरक्षित जीवन — यही इस दिवस का मूल संदेश है।

27 World Food Safety Day Speech Topics in Hindi 2025

World Food Safety Day Speech in Hindi TalksinHIndi

खाद्य सुरक्षा क्यों ज़रूरी है?

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण, और मेरे प्रिय साथियों,

आज मैं आपसे एक ऐसे विषय पर बात करना चाहता हूँ जो हर इंसान के जीवन से सीधे जुड़ा है — खाद्य सुरक्षा।

हम रोज़ाना जो भोजन करते हैं, वह हमारे शरीर को ऊर्जा देता है, हमें स्वस्थ रखता है। लेकिन अगर वही भोजन अशुद्ध, दूषित या मिलावटी हो, तो वह पोषण देने की बजाय हमें बीमार कर सकता है। यही कारण है कि खाद्य सुरक्षा सिर्फ एक विकल्प नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है।

दूषित भोजन से फूड पॉइजनिंग, दस्त, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं। बच्चे, बुज़ुर्ग और बीमार लोग ऐसे भोजन से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इसलिए यह ज़रूरी है कि हम सिर्फ खाना खाएं ही नहीं, बल्कि साफ, सुरक्षित और गुणवत्ता वाला खाना खाएं।

सरकार ने FSSAI जैसे संगठन बनाए हैं जो खाद्य पदार्थों की जांच करते हैं। लेकिन असली ज़िम्मेदारी हम सबकी है — जागरूक उपभोक्ता बनें, पैकेट पर तारीख और लेबल पढ़ें, और साफ-सफाई पर ध्यान दें।

खाद्य सुरक्षा का मतलब है – सुरक्षित भोजन, स्वस्थ जीवन।
धन्यवाद।

सुरक्षित भोजन – स्वस्थ जीवन की कुंजी

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, सम्माननीय शिक्षकगण और मेरे प्रिय साथियों,

आज मैं आपसे एक बेहद महत्वपूर्ण विषय पर बात करना चाहता हूँ – “सुरक्षित भोजन: स्वस्थ जीवन की कुंजी”।

हम सब जानते हैं कि जीवन के लिए भोजन आवश्यक है, लेकिन क्या हम यह सुनिश्चित करते हैं कि जो खाना हम खा रहे हैं, वह वास्तव में सुरक्षित है? आजकल खाद्य मिलावट, रासायनिक कीटनाशक, और अस्वच्छता जैसे कारणों से भोजन की गुणवत्ता पर खतरा मंडरा रहा है।

सुरक्षित भोजन का मतलब सिर्फ स्वादिष्ट भोजन नहीं, बल्कि ऐसा भोजन जो स्वच्छ, मिलावट रहित और पोषण से भरपूर हो। अगर हम साफ और सुरक्षित खाना खाएँ, तो शरीर स्वस्थ रहेगा, रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ेगी और अस्पताल का खर्च भी कम होगा।

सरकार ने FSSAI जैसे संस्थान बनाए हैं जो खाद्य सुरक्षा नियमों को लागू करते हैं, लेकिन हमें खुद भी सजग रहना होगा। खाना बनाते समय सफाई रखें, खाने से पहले हाथ धोएँ और लोकल दुकानदारों से भी गुणवत्ता पर सवाल पूछें।

आइए, हम सभी मिलकर ये संकल्प लें – सुरक्षित भोजन अपनाएँ, स्वस्थ जीवन पाएं।

धन्यवाद।

मिलावटखोरी – छुपा हुआ ज़हर

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे साथियों,

आज मैं आपके सामने एक ऐसे गंभीर विषय पर बोलने जा रहा हूँ जो हमारी सेहत को चुपचाप निगल रहा है — मिलावटखोरी: एक छुपा हुआ ज़हर।

मिलावटखोरी का मतलब है — खाने-पीने की चीज़ों में नकली या हानिकारक पदार्थ मिलाना। आज दूध में डिटर्जेंट, हल्दी में पीली रंगाई, मिर्च में ईंट का पाउडर और घी में प्लास्टिक तक मिलाया जा रहा है। यह सिर्फ धोखा नहीं, बल्कि सीधा ज़हर है, जो हमारे शरीर में रोज़ जा रहा है।

इससे कैंसर, किडनी फेल होना, गैस्ट्रिक प्रॉब्लम्स और यहां तक कि मौत भी हो सकती है। सबसे दुख की बात यह है कि बच्चों तक को यह ज़हरीला खाना मिल रहा है।

सरकार कानून बनाती है, छापे मारती है, लेकिन अगर हम खुद जागरूक नहीं होंगे तो कुछ नहीं बदलेगा। हमें खरीदारी करते वक्त ब्रांड और गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए। लोकल दुकानदारों से सवाल पूछना चाहिए और संदिग्ध चीज़ों की शिकायत करनी चाहिए।

याद रखें — मिलावटी खाना धीरे-धीरे जान लेता है।
आइए, हम सब मिलकर इस ज़हर के खिलाफ आवाज़ उठाएँ।

धन्यवाद।

बच्चों के लिए सुरक्षित भोजन का महत्व

नमस्कार,

आदरणीय अध्यापकगण और मेरे प्रिय साथियों,

आज मैं एक ऐसे विषय पर बोलना चाहता हूँ जो हम सभी के भविष्य से जुड़ा है – बच्चों के लिए सुरक्षित भोजन का महत्व।

बच्चे देश का भविष्य होते हैं। उनके विकास के लिए पोषण से भरपूर और सुरक्षित भोजन अत्यंत आवश्यक है। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि आज कई बच्चे ऐसा खाना खा रहे हैं जो न तो साफ़ होता है, न ही पोषण से भरपूर।

बाजार में मिलने वाले चिप्स, कोल्ड ड्रिंक, रंग-बिरंगे कैंडीज़ – यह सब दिखने में अच्छे लगते हैं, लेकिन सेहत के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। कई बार स्कूलों में भी मिड-डे मील की गुणवत्ता पर सवाल उठते हैं। मिलावटी भोजन से बच्चों में कमजोरी, पेट की बीमारी और पढ़ाई में ध्यान की कमी हो सकती है।

इसलिए ज़रूरी है कि माता-पिता, शिक्षक और सरकार सभी मिलकर यह सुनिश्चित करें कि बच्चों को साफ, ताजा और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन मिले।

याद रखें – सुरक्षित भोजन मतलब स्वस्थ बचपन, और स्वस्थ बचपन मतलब उज्जवल भविष्य।

धन्यवाद।

खाद्य सुरक्षा कानून – क्या आप जानते हैं?

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्रिय साथियों,

आज मैं आपसे एक बेहद ज़रूरी विषय पर बात करना चाहता हूँ — खाद्य सुरक्षा कानून।

हम रोज़ जो खाना खाते हैं, उसकी गुणवत्ता और सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सिर्फ विक्रेताओं की नहीं, बल्कि सरकार की भी होती है। इसी जिम्मेदारी को निभाने के लिए भारत सरकार ने 2006 में एक कानून बनाया – खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम (Food Safety and Standards Act)।

इस कानून के तहत 2011 में FSSAI (भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण) की स्थापना की गई। इसका काम है – बाजार में बिकने वाले खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना, मिलावट रोकना, और उपभोक्ताओं को सही जानकारी देना।

क्या आपने कभी खाने के पैकेट पर FSSAI का लोगो या लाइसेंस नंबर देखा है? यह उस भोजन की जांच और मंजूरी का प्रमाण होता है।

लेकिन सिर्फ कानून बना देने से कुछ नहीं होता। जब तक हम खुद जागरूक नहीं होंगे, तब तक मिलावटी और असुरक्षित भोजन बिकता रहेगा। इसलिए ज़रूरी है कि हम लेबल पढ़ें, तारीख देखें और संदिग्ध चीज़ों की शिकायत करें।

खाद्य सुरक्षा सिर्फ अधिकार नहीं – ज़िम्मेदारी भी है।
धन्यवाद।

घर की रसोई में खाद्य सुरक्षा

नमस्कार,

आदरणीय उपस्थितजनों और मेरे प्रिय साथियों,

आज मैं बात करना चाहता हूँ उस जगह की, जहां से हमारे दिन की शुरुआत होती है – हमारी रसोई। हम सोचते हैं कि घर का खाना हमेशा सुरक्षित होता है, लेकिन क्या वह सच में पूरी तरह सुरक्षित है?

खाद्य सुरक्षा सिर्फ होटल या फैक्ट्री की बात नहीं है। हमारी रसोई में भी साफ-सफाई, सही स्टोरेज और ध्यान बहुत जरूरी है। अगर सब्ज़ियां अच्छे से नहीं धोई गईं, दूध ढक कर नहीं रखा गया, या बासी खाना दोबारा गर्म करके खाया गया – तो ये सब हमारी सेहत पर बुरा असर डाल सकते हैं।

कई बार तेल को बार-बार गर्म करने से उसमें हानिकारक रसायन बन जाते हैं। फ्रिज में चीज़ें सही तापमान पर न रखना भी नुकसानदायक हो सकता है।

  • इसलिए घर की रसोई में भी हमें कुछ नियम अपनाने चाहिए –
    • खाना बनाते समय हाथ धोना
    • कच्चे और पके खाने को अलग रखना
    • ताजा और साफ सामग्री का उपयोग करना
    • खाना ढंककर रखना

याद रखें, स्वास्थ्यवर्धक भोजन की शुरुआत हमारी रसोई से होती है।
साफ रसोई, सुरक्षित खाना – यही है सच्ची खाद्य सुरक्षा।

धन्यवाद।

होटल और ढाबों में स्वच्छता की ज़रूरत

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे साथियों,

आज मैं एक ऐसे विषय पर बात करना चाहता हूँ जो हमारे स्वास्थ्य से सीधा जुड़ा है – होटल और ढाबों में स्वच्छता की ज़रूरत।

हममें से कई लोग रोज़ बाहर खाना खाते हैं – स्कूल के रास्ते में, सफर में, या परिवार के साथ बाहर जाते समय। लेकिन क्या हम कभी सोचते हैं कि जिन जगहों से हम खाना ले रहे हैं, वहाँ की सफाई कैसी है?

अक्सर छोटे ढाबों या स्ट्रीट फूड की दुकानों पर न तो खाना ढका होता है, न ही रसोइया साफ़ कपड़े पहनता है। बरतन गंदे होते हैं, पानी साफ़ नहीं होता, और कचरा खुला पड़ा रहता है। ये सारी बातें खतरनाक बीमारियों को न्योता देती हैं – जैसे फूड पॉइजनिंग, हैजा, टाइफॉइड।

स्वच्छता कोई विकल्प नहीं, ज़रूरत है। होटल मालिकों को FSSAI के नियमों का पालन करना चाहिए। लेकिन साथ ही हमें भी जागरूक रहना होगा – गंदगी दिखे तो खाना न खरीदें, और जरूरत हो तो शिकायत करें।

याद रखिए, स्वस्थ समाज की शुरुआत साफ़ रसोई और साफ़ होटल से होती है।
धन्यवाद।

पैकेज्ड फूड – कितना सुरक्षित?

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्रिय साथियों,

आज मैं बात करना चाहता हूँ एक ऐसे विषय पर, जो हमारी रोज़मर्रा की आदत बन चुका है – पैकेज्ड फूड, यानी डिब्बाबंद या रेडी-टू-ईट भोजन।

बाजार में आज हर चीज़ पैक में मिलती है – बिस्कुट, चिप्स, जूस, इंस्टेंट नूडल्स, यहां तक कि सब्ज़ी और दालें भी। ये चीज़ें सुविधाजनक ज़रूर हैं, लेकिन क्या ये सुरक्षित भी हैं?

पैकेज्ड फूड में अक्सर प्रिज़रवेटिव, आर्टिफिशियल फ्लेवर, और रंग मिलाए जाते हैं जो लंबे समय तक सेवन करने पर हमारी सेहत को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इनमें पोषण की मात्रा भी कम होती है और सोडियम, शुगर तथा फैट की मात्रा अधिक।

इसके अलावा, कई बार पुराने या एक्सपायर उत्पाद भी बाजार में बिकते रहते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि हम पैकेट पर मैन्युफैक्चरिंग डेट, एक्सपायरी डेट और FSSAI नंबर ध्यान से देखें।

याद रखें, जो दिखता है वह हमेशा सुरक्षित नहीं होता। हमें स्वाद और सुविधा के साथ-साथ स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए।

सचेत उपभोक्ता बनें, और पैकेज्ड फूड को समझदारी से चुनें।

धन्यवाद।

फूड लेबल पढ़ना क्यों ज़रूरी है?

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्रिय साथियों,

आज मैं बात करना चाहता हूँ एक ऐसी आदत के बारे में, जो छोटी लगती है, लेकिन हमारी सेहत पर बड़ा असर डालती है — फूड लेबल पढ़ना।

हम अक्सर बाजार से पैकेट में बंद चीज़ें खरीदते हैं – जैसे बिस्कुट, तेल, जूस, नूडल्स वगैरह। लेकिन क्या हम उनके पीछे लगे लेबल को ध्यान से पढ़ते हैं? ज्यादातर नहीं।

  • फूड लेबल पढ़ना ज़रूरी है क्योंकि उसमें हमारे लिए महत्वपूर्ण जानकारियाँ होती हैं —
  • उसमें क्या-क्या सामग्री है (Ingredients)
  • उसमें कितनी कैलोरी, चीनी, नमक और वसा है (Nutrition Facts)
  • बनाने और समाप्ति की तारीख (MFG & EXP Date)
  • क्या वह शाकाहारी है या मांसाहारी (Green/Red mark)
  • और सबसे जरूरी – FSSAI लाइसेंस नंबर

अगर हम यह नहीं पढ़ते, तो हम अनजाने में मिलावटी या एक्सपायर चीज़ें खरीद सकते हैं, जिससे हमारी सेहत को खतरा हो सकता है।

सजग उपभोक्ता वही है, जो लेबल पढ़े, समझे और तभी खरीदे।
स्वास्थ्य कोई मज़ाक नहीं — यह हमारी ज़िम्मेदारी है।

लेबल पढ़ो, सेहत चुनो।

धन्यवाद।

खाद्य सुरक्षा दिवस का इतिहास और उद्देश्य

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे साथियों,

आज मैं आपसे बात करना चाहता हूँ विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस के बारे में – इसका इतिहास और उद्देश्य क्या है?

हर साल 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 2019 में हुई, जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने यह घोषणा की कि खाद्य सुरक्षा को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाना जरूरी है। इसका आयोजन विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और FAO (Food and Agriculture Organization) मिलकर करते हैं।

  • इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य है –
  • लोगों को यह बताना कि जो खाना हम खाते हैं, वह साफ, सुरक्षित और गुणवत्ता युक्त होना चाहिए।
  • खाद्य जनित बीमारियों से बचाव के लिए जानकारी देना।
  • सरकार, व्यापारी और आम जनता – सभी को उनकी जिम्मेदारी याद दिलाना।

आज के दौर में मिलावट, गंदगी और रासायनिक खाद्य पदार्थों के बढ़ते उपयोग ने स्वास्थ्य को खतरे में डाल दिया है। ऐसे में यह दिवस हमें सचेत करता है कि “स्वस्थ भोजन, सुरक्षित जीवन” केवल नारा नहीं, एक ज़रूरत है।

आइए, इस दिन हम यह संकल्प लें कि हम न सिर्फ सुरक्षित खाना खाएंगे, बल्कि दूसरों को भी जागरूक करेंगे।

धन्यवाद।

रोग और दूषित भोजन का सीधा संबंध

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्रिय साथियों,

आज मैं बात करना चाहता हूँ एक गंभीर विषय पर — रोग और दूषित भोजन का सीधा संबंध।

हम जो भोजन करते हैं, वही हमारे शरीर की सेहत तय करता है। अगर भोजन शुद्ध, पोषक और ताजा हो तो शरीर मजबूत और रोगमुक्त रहता है। लेकिन अगर भोजन दूषित हो — यानी उसमें कीटाणु, रसायन, या मिलावट हो — तो वह बीमारी का कारण बनता है।

  • दूषित भोजन से होने वाली आम बीमारियों में हैं:
  • फूड पॉइजनिंग
  • टायफॉइड
  • हैजा
  • दस्त
  • पेट की गैस और संक्रमण

इसके अलावा लंबे समय तक ऐसे भोजन का सेवन करने से कैंसर, लिवर और किडनी की समस्याएँ भी हो सकती हैं।

अक्सर होटल, ढाबों, या खुले बाजार में मिलने वाले खाद्य पदार्थ साफ नहीं होते। कई बार घरों में भी भोजन को ठीक से ढका नहीं जाता, या एक्सपायर चीजें खा ली जाती हैं। यह सब हमारी सेहत के लिए बेहद खतरनाक है।

इसलिए हमें चाहिए कि हम हमेशा स्वच्छ, ताजा और जांचा-परखा हुआ खाना ही खाएं।
दूषित भोजन से सावधान रहें – क्योंकि यह बीमारियों की पहली सीढ़ी है।

धन्यवाद।

सड़क किनारे बिकने वाले खाद्य पदार्थ और खतरे

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्यारे साथियों,

आज मैं एक ऐसे विषय पर बोलना चाहता हूँ जो हमारे रोज़मर्रा के जीवन से जुड़ा है – सड़क किनारे बिकने वाले खाद्य पदार्थ और उनसे होने वाले खतरे।

हममें से बहुत से लोग स्कूल के बाहर, बाजार में या सफर के दौरान गोलगप्पे, चाट, समोसे, पकौड़ी जैसे स्ट्रीट फूड खाते हैं। ये स्वादिष्ट तो लगते हैं, लेकिन क्या वे हमारे शरीर के लिए सुरक्षित हैं?

अक्सर इन खाद्य पदार्थों को बिना ढके खुले में रखा जाता है। उन पर धूल-मिट्टी, गाड़ियों का धुआँ, मक्खियाँ और कीड़े बैठते हैं। पानी की शुद्धता का ध्यान नहीं रखा जाता, और हाथ धोए बिना खाना बनाया जाता है। ऐसे खाने से फूड पॉइजनिंग, पेट दर्द, डायरिया, टायफॉइड और हैजा जैसे रोग हो सकते हैं।

स्वाद के लालच में हम अपनी सेहत को खतरे में डालते हैं। इसलिए जरूरी है कि हम सोच-समझकर खाना चुनें। अगर खाना साफ़ न लगे, तो उसे खाने से बचें।

याद रखें – सस्ती चीज़ हर बार सही नहीं होती। स्वास्थ्य सबसे बड़ी पूंजी है।

धन्यवाद।

फूड इंस्पेक्शन – जाँच की प्रक्रिया

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे साथियों,

आज मैं आपसे बात करना चाहता हूँ एक ज़रूरी विषय पर – फूड इंस्पेक्शन यानी खाद्य जाँच की प्रक्रिया।

जब हम बाजार से कुछ भी खाने का सामान खरीदते हैं, तो हम यह मानकर चलते हैं कि वह सुरक्षित है। लेकिन उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए फूड इंस्पेक्टर और संबंधित विभागों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।

फूड इंस्पेक्शन की प्रक्रिया में खाद्य पदार्थों के नमूने लिए जाते हैं और उन्हें सरकारी प्रयोगशालाओं में जांचा जाता है। देखा जाता है कि उसमें कोई मिलावट, हानिकारक रसायन, या खतरनाक बैक्टीरिया तो नहीं हैं। यह जांच FSSAI (भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण) के दिशा-निर्देशों के अनुसार की जाती है।

अगर किसी उत्पाद में गड़बड़ी पाई जाती है, तो संबंधित दुकानदार या निर्माता पर जुर्माना लगाया जाता है, और जरूरत पड़े तो लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है।

इस प्रक्रिया का उद्देश्य है — हमें सुरक्षित, स्वच्छ और पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराना।

आइए, हम जागरूक नागरिक बनें और फूड इंस्पेक्शन को समर्थन दें, क्योंकि स्वस्थ समाज की नींव सुरक्षित भोजन है।

धन्यवाद।

फूड पॉइजनिंग से कैसे बचें?

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे साथियों,

आज मैं बात करना चाहता हूँ एक गंभीर लेकिन ज़रूरी विषय पर – फूड पॉइजनिंग से कैसे बचें?

फूड पॉइजनिंग यानी भोजन से होने वाली विषाक्तता, तब होती है जब हम ऐसा खाना खा लेते हैं जो दूषित, बासी या संक्रमित होता है। इसके लक्षणों में उल्टी, दस्त, पेट दर्द, बुखार और कमजोरी शामिल हैं। यह समस्या खासतौर पर गर्मियों में और गंदगी वाले स्थानों पर अधिक देखी जाती है।

अब सवाल है – इससे बचा कैसे जाए?

  • हमेशा ताजा और पका हुआ खाना खाएं।
  • खाना खाने से पहले और बनाते समय हाथ ज़रूर धोएं।
  • बासी या खुले में रखा खाना न खाएं।
  • फलों और सब्जियों को अच्छी तरह धोकर ही उपयोग करें।
  • बाहर का स्ट्रीट फूड सोच-समझकर खाएं।
  • दूध, दही और मांस जैसी चीज़ों को फ्रिज में ही रखें।

फूड पॉइजनिंग एक छोटी लापरवाही से बड़ी बीमारी बन सकती है। इसलिए हमें सतर्क रहना चाहिए।

स्वच्छ भोजन, सुरक्षित जीवन – यही है असली सुरक्षा।

धन्यवाद।

रसायनयुक्त फल-सब्जियों से खतरा

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्यारे साथियों,

आज मैं एक ऐसे मुद्दे पर बात करना चाहता हूँ जो सीधे हमारे स्वास्थ्य से जुड़ा है — रसायनयुक्त फल और सब्जियाँ।

हम यह सोचकर फल और सब्जियाँ खरीदते हैं कि वे पोषण देंगी और हमें स्वस्थ रखेंगी। लेकिन आजकल जो फल-सब्जियाँ बाजार में मिल रही हैं, उनमें तरह-तरह के रसायनों का प्रयोग हो रहा है — जैसे कार्बाइड से पकाया गया आम, पॉलिश किया हुआ सेब, और कीटनाशकों से सना हुआ पालक

इन रसायनों से फल और सब्ज़ियाँ देखने में तो ताज़ा लगती हैं, लेकिन असल में ये हमारे शरीर में ज़हर की तरह काम करती हैं। इससे फूड पॉइजनिंग, हार्मोन असंतुलन, कैंसर, त्वचा रोग, और आंतों की समस्याएँ हो सकती हैं।

  • इससे बचने के लिए हमें कुछ सावधानियाँ बरतनी होंगी:
  • फल-सब्जियों को इस्तेमाल से पहले अच्छी तरह धोएं
  • छिलका हटाकर खाएं
  • ऑर्गेनिक विकल्प चुनें
  • लोकल किसान मंडी से सीधे खरीदारी करें

याद रखिए, रंग-रूप नहीं, शुद्धता मायने रखती है।
रसायनों से बचें, जीवन बचाएँ।

धन्यवाद।

“एक स्वास्थ्य नीति” और खाद्य सुरक्षा

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे साथियों,

आज मैं बात करना चाहता हूँ एक आधुनिक और बेहद जरूरी सोच पर — “एक स्वास्थ्य नीति” यानी One Health Policy और इसका संबंध खाद्य सुरक्षा से।

One Health का मतलब है — मनुष्य, जानवर और पर्यावरण — तीनों का स्वास्थ्य आपस में जुड़ा हुआ है। अगर किसी एक में गड़बड़ी हो, तो बाकी दो पर भी असर पड़ता है। यह नीति कहती है कि जब तक इन तीनों को संतुलित और सुरक्षित नहीं रखा जाएगा, तब तक असली स्वास्थ्य सुरक्षा संभव नहीं।

अब सोचिए — अगर गाय को दूषित चारा दिया जाए, तो उसका दूध भी असुरक्षित होगा। अगर खेत में कीटनाशकों का ज़्यादा उपयोग हो, तो सब्ज़ियाँ ज़हरीली होंगी। और अगर पानी प्रदूषित होगा, तो फसल और मछलियाँ दोनों प्रभावित होंगी।

इसलिए खाद्य सुरक्षा के लिए हमें केवल खाना नहीं, बल्कि पूरा सिस्टम सुधारना होगा — जानवरों की देखभाल, मिट्टी की गुणवत्ता और साफ़-सुथरे उत्पादन की ओर ध्यान देना होगा।

यही है One Health की असली सोच —
एक साथ सुरक्षित, तो सब सुरक्षित।

धन्यवाद।

स्कूल में मिड-डे मील की गुणवत्ता पर सवाल

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्रिय साथियों,

आज मैं एक ऐसे विषय पर बोलना चाहता हूँ जो सीधे हमारे भविष्य और स्वास्थ्य से जुड़ा है — मिड-डे मील की गुणवत्ता।

भारत सरकार ने मिड-डे मील योजना बच्चों को पोषण देने और स्कूलों में उपस्थिति बढ़ाने के लिए शुरू की थी। यह एक सराहनीय कदम है, लेकिन आज इसके क्रियान्वयन पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।

अक्सर देखने में आता है कि कई स्कूलों में मिलने वाला भोजन अस्वच्छ होता है, सब्ज़ियाँ अधपकी होती हैं, दाल में पानी ज़्यादा और पोषण कम होता है। कई बार बासी खाना परोसा जाता है, जिससे बच्चों को फूड पॉइजनिंग तक हो जाती है। कहीं-कहीं तो खाना बनाने में इस्तेमाल होने वाली चीज़ें भी घटिया होती हैं।

मिड-डे मील सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं, स्वस्थ और संतुलित आहार देने के लिए है। इसलिए ज़रूरी है कि स्कूल, प्रशासन और समाज – सब मिलकर इसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करें।

याद रखें, अच्छा भोजन मतलब अच्छा स्वास्थ्य, और अच्छा स्वास्थ्य मतलब उज्ज्वल भविष्य।

धन्यवाद।

जागरूक उपभोक्ता ही सुरक्षित उपभोक्ता

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्रिय साथियों,

आज मैं आपसे बात करना चाहता हूँ एक बहुत ही ज़रूरी विषय पर — “जागरूक उपभोक्ता ही सुरक्षित उपभोक्ता”।

हम सब रोज़ कुछ न कुछ खरीदते हैं — दूध, सब्ज़ियाँ, नमकीन, मिठाई या पैकेज्ड फूड। लेकिन क्या हम ये देखते हैं कि जो हम खरीद रहे हैं, वह सुरक्षित है या नहीं? क्या हम एक्सपायरी डेट, FSSAI मार्क, या सामग्री (Ingredients) की जानकारी पढ़ते हैं?

अगर नहीं पढ़ते, तो हमें कभी भी मिलावटी, दूषित या नकली सामान मिल सकता है, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है। यही कारण है कि हर नागरिक को एक जागरूक उपभोक्ता बनना चाहिए।

हमें दुकानदार से बिल लेना चाहिए, खुले खाद्य पदार्थों से बचना चाहिए, और अगर कोई मिलावट दिखे तो तुरंत शिकायत करनी चाहिए।

सरकार ने हमें उपभोक्ता अधिकार दिए हैं, लेकिन उनका लाभ तभी मिलेगा जब हम जागरूक होंगे।

याद रखिए,
“जो जागरूक है वही सुरक्षित है।”
“जागरूक उपभोक्ता ही असली शक्ति है।”

धन्यवाद।

जैविक (ऑर्गेनिक) खाद्य पदार्थ – कितना भरोसेमंद?

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे साथियों,

आज हम एक ऐसे विषय पर चर्चा कर रहे हैं जो तेजी से लोकप्रिय हो रहा है — जैविक यानी ऑर्गेनिक खाद्य पदार्थ।

हम सब सुनते हैं कि जैविक खाना सेहतमंद होता है, क्योंकि इसमें रसायन या कीटनाशक नहीं होते। यह पारंपरिक खेती के तरीकों से उगाया जाता है और प्राकृतिक खाद, गोबर व जैविक बीजों का उपयोग किया जाता है।

लेकिन सवाल उठता है — क्या ये खाद्य पदार्थ सच में भरोसेमंद हैं?

बाज़ार में “ऑर्गेनिक” का टैग लगाकर कई नकली उत्पाद बेचे जा रहे हैं। कई बार उपभोक्ता यह नहीं जान पाते कि वह असली है या सिर्फ ब्रांडिंग का खेल। इसके अलावा, जैविक उत्पाद आमतौर पर महंगे भी होते हैं।

इसलिए ज़रूरी है कि हम प्रमाणित ऑर्गेनिक ब्रांड से ही खरीदारी करें और FSSAI या अन्य सरकारी प्रमाणपत्रों को जांचें।

ऑर्गेनिक खाना भरोसेमंद है, लेकिन सिर्फ तब जब हम जागरूक उपभोक्ता बनें।

सेहत के साथ समझदारी भी जरूरी है।

धन्यवाद।

फ्रोजन और प्रोसेस्ड फूड – सेहत या सिरदर्द?

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे साथियों,

आज मैं बात करना चाहता हूँ एक आधुनिक जीवनशैली से जुड़े मुद्दे पर — फ्रोजन और प्रोसेस्ड फूड: सेहत या सिरदर्द?

भागदौड़ भरी ज़िंदगी में लोग झटपट खाना चाहते हैं। ऐसे में फ्रोजन पिज्जा, नूडल्स, प्रोसेस्ड मांस, रेडी-टू-ईट स्नैक्स लोगों की पहली पसंद बन गए हैं। इन्हें बस गर्म करो और खा लो — सुविधाजनक ज़रूर है, लेकिन क्या यह स्वास्थ्य के लिए सही है?

प्रोसेस्ड फूड में अक्सर अधिक नमक, शुगर, प्रिज़रवेटिव और फैट होता है। यह सब चीज़ें लंबे समय तक सेवन करने पर मोटापा, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, और डायबिटीज़ जैसी बीमारियों का कारण बनती हैं। वहीं, फ्रोजन फूड लंबे समय तक फ्रीजर में रहने से अपने पोषक तत्व खो सकता है

ज़रूरी नहीं कि हर फ्रोजन या प्रोसेस्ड फूड खराब हो, लेकिन लगातार इन पर निर्भर रहना सेहत के लिए सिरदर्द बन सकता है।

इसलिए हमें ताज़ा, घर का बना और संतुलित भोजन प्राथमिकता देनी चाहिए।

सुविधा चुनें, पर सेहत न भूलें।

धन्यवाद।

खाद्य अपव्यय बनाम खाद्य सुरक्षा

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे साथियों,

आज मैं एक बहुत ही गंभीर विषय पर बोलना चाहता हूँ — खाद्य अपव्यय बनाम खाद्य सुरक्षा।

एक तरफ़ दुनिया में करोड़ों लोग भूखे सोते हैं, और दूसरी तरफ़ हर दिन टनों खाना बर्बाद हो जाता है — शादी-ब्याह, होटलों, पार्टियों और यहां तक कि घरों में भी। क्या यह न्यायसंगत है?

खाद्य सुरक्षा का मतलब है हर व्यक्ति को समय पर, पर्याप्त और सुरक्षित भोजन मिले। लेकिन जब हम अच्छा-भला खाना कचरे में फेंकते हैं, तो हम इस लक्ष्य को और कठिन बना देते हैं। भारत जैसे देश में, जहां अब भी लाखों लोग कुपोषण से जूझ रहे हैं, वहां भोजन का अपव्यय सीधा सामाजिक और नैतिक अपराध है।

  • इसलिए हमें ज़रूरत है —
    • जितना खाना चाहिए उतना ही लें,
    • बचा हुआ खाना जरूरतमंदों तक पहुँचाएँ,
    • और खाद्य संसाधनों का सम्मान करें।

भोजन पूज्य है — इसे बर्बाद नहीं, साझा करें।
भोजन बचाइए, भूख मिटाइए।

धन्यवाद।

महिलाओं की भूमिका सुरक्षित भोजन में

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे साथियों,

आज मैं एक ऐसे विषय पर बात करना चाहता हूँ जो हर घर की रसोई से जुड़ा है — महिलाओं की भूमिका सुरक्षित भोजन में।

हमारे समाज में अधिकतर घरों में खाना बनाने की ज़िम्मेदारी महिलाएँ निभाती हैं। माँ, बहन, पत्नी या दादी — ये सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि परिवार की सेहत का भी ध्यान रखती हैं। वे यह तय करती हैं कि खाना क्या बनेगा, कैसे बनेगा और किस तरह से परोसा जाएगा।

महिलाएँ ही सबसे पहले यह पहचान सकती हैं कि सब्ज़ी ताज़ा है या बासी, दूध उबला है या नहीं, और साफ-सफाई का ध्यान रखा जा रहा है या नहीं। आज जब मिलावटी खाने की समस्या बढ़ रही है, तब महिलाओं की सजगता और समझदारी पूरे परिवार को बीमारियों से बचा सकती है।

अगर महिलाओं को खाद्य सुरक्षा की सही जानकारी मिले, तो वे सिर्फ अपने घर को नहीं, समाज को भी स्वस्थ बना सकती हैं।

इसलिए कहें —
“स्वस्थ समाज की नींव, जागरूक महिला के हाथों में है।”

धन्यवाद।

जागरूकता अभियान की ज़रूरत

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे साथियों,

आज मैं बात करना चाहता हूँ खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में जागरूकता अभियान की ज़रूरत पर।

हम सभी जानते हैं कि आज बाजार में मिलावटी दूध, नकली मसाले, रंगीन मिठाइयाँ और खुले में बिकने वाला दूषित खाना आम बात हो गई है। पर दुख की बात यह है कि लोग इन खतरों के बारे में अनजान हैं। वे ना तो लेबल पढ़ते हैं, ना ही एक्सपायरी डेट देखते हैं।

ऐसी स्थिति में केवल कानून या सरकारी नियम काफी नहीं। जब तक आम जनता जागरूक नहीं होगी, तब तक कोई सुधार संभव नहीं।

इसलिए हमें स्कूलों, गाँवों, बाज़ारों और शहरों में जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। पोस्टर, नारे, नुक्कड़ नाटक, सोशल मीडिया और जनसभाओं के ज़रिए लोगों को यह बताया जाना चाहिए कि वे क्या खा रहे हैं और कैसे बच सकते हैं।

जागरूक नागरिक ही सुरक्षित उपभोक्ता बन सकता है।
और यह जागरूकता सिर्फ ज़रूरत नहीं — आज की अनिवार्यता है।

धन्यवाद।

सोशल मीडिया और फूड सेफ्टी

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे साथियों,

आज मैं बात करना चाहता हूँ एक आधुनिक और प्रभावशाली माध्यम पर — सोशल मीडिया और उसका संबंध फूड सेफ्टी से।

आज हर व्यक्ति के हाथ में मोबाइल है और सोशल मीडिया हर दिन लाखों लोगों तक जानकारी पहुँचा रहा है। इस प्लेटफॉर्म का उपयोग फूड सेफ्टी के क्षेत्र में भी बहुत प्रभावी हो सकता है।

जब किसी दुकान या होटल में मिलावटी या गंदा खाना मिलता है, तो लोग फेसबुक, इंस्टाग्राम या ट्विटर के ज़रिए तुरंत उसकी तस्वीरें और जानकारी साझा करते हैं। इससे न सिर्फ अन्य उपभोक्ता सतर्क हो जाते हैं, बल्कि प्रशासन भी हरकत में आता है।

वहीं, FSSAI और स्वास्थ्य मंत्रालय भी अब सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं — जैसे कि क्या खाना सुरक्षित है, लेबल कैसे पढ़ें, और किस चीज़ की शिकायत कहाँ करें

लेकिन ध्यान रहे, सोशल मीडिया पर फैली हर जानकारी सही नहीं होती। इसलिए हमें सोच-समझकर, सत्यापित जानकारी ही साझा करनी चाहिए

सोशल मीडिया को जिम्मेदारी से इस्तेमाल करें — और फूड सेफ्टी की आवाज़ को दूर तक पहुँचाएँ।

धन्यवाद।

खाना बनाते समय सफाई का महत्व

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्यारे साथियों,

आज मैं एक ऐसे विषय पर बोलना चाहता हूँ, जो हर घर, हर रसोई और हर परिवार से जुड़ा है — खाना बनाते समय सफाई का महत्व।

खाना हमारे शरीर का ईंधन है। लेकिन अगर खाना बनाते समय साफ-सफाई का ध्यान न रखा जाए, तो वही खाना बीमारी का कारण बन सकता है। गंदे हाथों से खाना बनाना, बर्तन ठीक से साफ न होना, सब्ज़ियों को बिना धोए पकाना — ये सब चीज़ें भोजन को दूषित कर देती हैं।

इससे फूड पॉइजनिंग, पेट दर्द, डायरिया और कई तरह के संक्रमण हो सकते हैं। खासकर बच्चों और बुज़ुर्गों के लिए यह खतरा और भी बड़ा हो जाता है।

इसलिए खाना बनाते समय हमें कुछ आसान आदतें अपनानी चाहिए:

  • हाथ धोकर ही खाना बनाना
  • किचन और बर्तनों को साफ़ रखना
  • कच्चे और पके खाने को अलग रखना
  • खाना ढककर रखना

साफ खाना ही सुरक्षित खाना होता है।
स्वच्छ रसोई, स्वस्थ परिवार।

आइए, हम सभी मिलकर इसे अपनी आदत बनाएं।

धन्यवाद।

सही स्टोरेज तकनीकें – खाद्य सुरक्षा की नींव

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे साथियों,

आज मैं एक ऐसे विषय पर बोलना चाहता हूँ जो अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है, लेकिन खाद्य सुरक्षा का सबसे अहम हिस्सा है — सही स्टोरेज तकनीकें।

हम चाहे घर में खाना रखें, दुकान में माल स्टोर करें या खेत से अनाज लाकर गोदाम में रखें — यदि उसे सही तरीके से न रखा जाए, तो वह जल्दी खराब हो सकता है, कीड़े लग सकते हैं या उसमें बैक्टीरिया पनप सकते हैं।

  • उदाहरण के लिए —
    • दूध को हमेशा ठंडी जगह पर रखें,
    • हरी सब्ज़ियाँ नमी में रखें लेकिन बहुत ठंडी जगह पर नहीं,
    • अनाज को एयरटाइट डिब्बों में रखें ताकि कीड़े न लगें,
    • पके हुए और कच्चे खाने को अलग रखें।

गलत स्टोरेज से न केवल भोजन बर्बाद होता है, बल्कि वह इंसान के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचा सकता है। खासतौर पर गर्मी और बारिश के मौसम में तो विशेष सावधानी जरूरी होती है।

याद रखें —
सिर्फ खाना बनाना काफी नहीं, उसे सही तरीके से रखना भी उतना ही जरूरी है।

सही भंडारण, सुरक्षित भोजन।

धन्यवाद।

फूड सेफ्टी में तकनीकी विकास

नमस्कार,

आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षकगण और मेरे प्रिय साथियों,

आज मैं आपसे बात करना चाहता हूँ एक बेहद जरूरी और वर्तमान से जुड़ी विषय पर — फूड सेफ्टी में तकनीकी विकास

जैसे-जैसे विज्ञान और टेक्नोलॉजी आगे बढ़ी है, वैसे-वैसे खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में भी कई सकारात्मक बदलाव आए हैं। आज खाना सिर्फ स्वाद और पोषण तक सीमित नहीं, बल्कि उसकी सुरक्षा और गुणवत्ता की गारंटी देना भी ज़रूरी है — और इसमें तकनीक ने अहम भूमिका निभाई है।

अब डिजिटल लेबोरेटरी टेस्टिंग, QR कोड ट्रैकिंग, RFID टैग, फूड स्कैनिंग मशीनें, ऑटोमेटेड पैकिंग सिस्टम और कोल्ड स्टोरेज मॉनिटरिंग जैसे उपायों से यह पता लगाया जा सकता है कि कोई खाद्य सामग्री कितनी सुरक्षित है।

FSSAI जैसे संस्थान अब मोबाइल ऐप के ज़रिए उपभोक्ताओं को जानकारी दे रहे हैं। हम आसानी से किसी उत्पाद की ट्रेसबिलिटी (कहाँ से आया है) और एक्सपायरी जानकारी चेक कर सकते हैं।

तकनीक ने अब उपभोक्ता को ताकत दी है।

याद रखिए,
जहाँ तकनीक हो, वहाँ सुरक्षा संभव है।

धन्यवाद।

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